चौरी-चौरा
आज भी प्रासंगिक है चौरी-चौरा





किसानों की क्रांतिकारी बगावत ने 4 फरवरी 1922 को न केवल भारतीय इतिहास बल्कि विश्व इतिहास का यादगार दिन बना दिया। उस वक़्त ब्रिटिश भारत में संयुक्त प्रान्त आज के उ.प्र. राज्य के गोरखपुर जिले के चौरी चौरा में हुई थी। चौरी-चौरा के डुमरी खुर्द के लाल मुहम्मद, बिकरम अहीर, नजर अली, भगवान अहीर और अब्दुल्ला के नेतृत्व में किसानों ने आज ही के दिन 4 फरवरी 1922 में हजारों किसानों ने जमींदारों और ब्रिटिश सत्ता के स्थानीय केन्द्र चौरी-चौरा थाने को फूँक दिया जिसमेें 22 सिपाही मारे गए।
इस दिन डुमरी खुर्द गांव के गरीब मेहनतकश जनता ने जमींदारों और ब्रिटिश सत्ता के गढ़जोड़ को खुलेआम चुनौती दिया और कुछ समय के लिए ही सही चौरी-चौरा के इलाके पर अपना नियंत्रण कायम कर लिया।
चौरी-चौरा की घटना मूलत: भारत के गरीब और भूमिहीन किसानों की क्रांतिकारी बगावत थी। यह बगावत जमींदारों और ब्रिटिश सत्ता के गठजोड़ के खिलाफ थी। लेकिन साथ ही यह बगावत मोहनदास करम चंद्र गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस की जमींदार समर्थक नीतियों के भी खिलाफ थी।